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स्वर्णिम भारत (प्रारम्भ से 1206 ईं तक) --मौर्यकाल व 16 महाजनपद

* उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में समुद्र तक फैला यह उपमहाद्वीप भारत वर्ष के नाम से जाना जाता है
* भारत को महाकाव्य  तथा पुराणों में 'भारतवर्ष' अथवा 'भरत का देश' कहा गया  है।
*यूनानियों ने इसे 'इंडिया' नाम दिया।
*मुस्लिम इतिहासकारो ने इसे हिन्द अथवा हिन्दुस्तान नाम दिया था।
*इतिहास एवं संस्कृति अपने आरम्भिक काल से ही गौरवपूर्ण रही है । भारत विश्व गुरु ' तथा ' सोने को चिड़िया कहलाता था । 
• सिन्धु - सरस्वती सभ्यता , वैदिक सभ्यता , रामायण व महाभारतकालीन सभ्यता एवं संस्कृति का काल भी भारत का स्वर्णिम काल रहा है । 
• सिन्धु - सरस्वती सभ्यता स्थापत्य कला की दृष्टि से एक उत्कृष्ट सभ्यता थी । 
• भारत के विभिन्न आदर्श एवं नीति ग्रन्थों के रूप में रामायण व महाभारत प्रसिद्ध रहे हैं । महाजनपद काल ( 600 - 325 ई0 पू0 )
 • हमारा महाजनपद काल गणतंत्रात्मक तथा संवैधानिक व्यवस्था का आदर्श रहा है ।
 • उत्तर वैदिक काल में हमें विभिन्न जनपदों का अस्तित्व दिखाई देता है । ईसा पूर्व छठी शताब्दी तक आते - आते जनपद , महाजनपदों के रूप में विकसित हो गए । 
. बौद्ध ग्रन्थ ' अंगुत्तर निकाय ' और जैन ग्रन्थ ' भगवती सूत्र ' में 16 महाजनपदों का स्पष्ट उल्लेख मिलता है । दोनों की सूची में मात्र नामों का ही अन्तर है ।
 • बौद्ध ग्रन्थ ' अंगुत्तर निकाय ' के अनुसार महाजनपद थे - - काशी , अंग , कुरु , मगध , वज्जि , चेदि , मल्ल , वत्स , कोशल , पांचाल , मत्स्य , शूरसेन , अश्मक , अवन्ति , गांधार एवं कम्बोज । ०राजस्थान के पूर्वी भाग में भी जनपदीय शासन व्यवस्था थी । 
०राजस्थान के प्रमुख जनपद थे - जांगल , मत्स्य , शिवि एवं शुरसेन आदि ।
मौर्य वंश 
मौर्य साम्राज्य की स्थापना के साथ ही भारतीय इतिहास में एक नए युग का प्रारम्भ होता है ।
०चन्द्रगुप्त मौर्य
 मौर्य वंश का संस्थापक चन्द्रगुप्त मौर्य ऐसा पहला शासक था जिसने सम्पूर्ण भारत को राजनीतिक दृष्टि से एकता के सूत्र में पिरोया । 
अपने गुरु चाणक्य की सहायता से चन्द्रगुप्त ने अन्तिम नंद शासक घनानंद को पराजित कर 322 ई० पूर्व में मगध का राजसिंहासन प्राप्त किया । 
चन्द्रगप्त मौर्य के विशाल साम्राज्य में काबुल , हेरात , कंधार , बलचिस्तान , पंजाब , गंगा - यमुना का मैदान , बंगाल , बिहार गुजरात , विन्ध्य एवं कश्मीर के भूभाग सम्मिलित थे । 
लगभग 24 वर्ष शासन करने के पश्चात् चन्द्रगुप्त मौर्य ने राजसिंहासन त्याग कर अपने गुरु जैन मुनि भद्रबाहु के साथ अपना अन्तिम समय दक्षिण के जैन तीर्थ श्रवणबेलगोला में व्यतीत किया । यहीं पर रहते हुए 298 ई० पू० के लगभग एक सच्चे जैन की भांति उसने मृत्यु का वरण किया । 
०बिन्दुसार
*चन्द्रगुप्त मौर्य की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र बिन्दुसार मगध का सम्राट बना , जिसने 298 ई० पू० से 273 ई० पू० तक शासन किया । 
*इसे अमित्रघात,   वायुपुराण में भद्रसार(वारिसार), जैन ग्रन्थों में सिंहसेन कहा गया है।
*इसके शासनकाल में तक्षशिला में दो विद्रोह हुए थे जिन्हें दबाने के लिए पहले सुसीम को भेजा और बाद में अशोक को भेजा था।
*इसके बाद अशोक शासक बना ।
०अशोक 
*अशोक ,चन्द्रगुप्त मौर्य का पौत्र एवं बिन्दुसार का पुत्र था । 
*अशोक की माता का नाम 'सुभद्रांगी 'था।
*पुराणों में अशोक को 'अशोकवर्धन 'कहा गया है।
*अशोक 269ई. पूर्व मगध की राजगद्दी पर बैठा था।
* भारत के इतिहास में अशोक ही पहला ऐसा शासक था जिसने अपने आदेशों को शिलाओं पर खुदवाया था ।
*अशोक  ने शासन के प्रारम्भिक वर्षों में साम्राज्य विस्तार एवं विदेशीयो से श्रेष्ठ सम्बन्ध बनाने की नीति अपनाई थी। 
राज्याभिषेक के आठवे वर्ष ( 261 ई०पू० ) में अशोक ने कलिंग पर आक्रमण किया और कलिंग की राजधानी तोसली पर अधिकार कर लिया था । इस आक्रमण में लगभग एक लाख लोग मारे गये। इस व्यापक नरसंहार ने अशोक को विचलित कर दिया । इसके फलस्वरूप उसने भविष्य में कभी युद्ध न करने को प्रतिज्ञा की।
* अशोक ने मनुष्य की नैतिक उन्नति हेत ' धम्म ' नामक आदर्शों का प्रतिपादन किया ।(धम्म- अशोक ने मानव की नैतिक उन्नति के लिये जिन आदर्शो का प्रतिपादन किया किया है उन्हें धम्म कहते है ) उसके अनुसार पाप कर्म से निवृत्ति वित कल्याण , दया , दान , सत्य एवं कर्म शुद्धि आदि ही धम्म है । 
*भारत मे शिलालेखों का प्रचलन सर्वप्रथम अशोक ने किया था।
*अशोक के शिलालेखों में ब्राह्मी,खरोष्ठी, ग्रीक तथा आरमेइक लिपि का प्रयोग हुआ है।
*ग्रीक व आरमेइक लिपि के अभिलेख 'अफगानिस्तान से मिले है।
*खरोष्ठी लिपि के अभिलेख उत्तर पश्चिम पाकिस्तान से व शेष भारत से ब्राह्मी लिपि के अभिलेख प्राप्त हुए है।
*अशोक के अधिकांश अभिलेख ब्राह्मी लिपि में है ।
*अशोक के शिलालेख की खोज सबसे पहले 1750 ईं में पाद्रेटी फ़ेंथैलर ने की थी।
*अशोक के अभिलेखों को पढ़ने में सबसे पहली सफलता 1837 ईं में जेम्स प्रिंसेप को प्राप्त हुई। 
*अशोक के अभिलेखों को तीन भागों में बांटा जा सकता है 
(1) शिलालेख 
(2)स्तम्भलेख 
(3) गुहालेख
* लगभग 40 वर्ष शासन करने के पश्चात् 232 ई० में अशोक की मृत्यु हो गई ।
*अशोक के पश्चात् अगले 50 वर्ष तक उसके कमजोर उत्तराधिकारियों का शासन रहा । 
*बृहद्रथ अन्तिम मौर्य सम्राट या जिसको उसके मंत्री पुष्यमित्र शुंग ने हत्या करके मगध में शुंग वंश की नींव डाली ।
*मौर्य साम्राज्य की प्रशासन व्यवस्था
भारत में प्रथम बार मौर्यकाल में केन्द्रीकृत शासन व्यवस्था की स्थापना हुई । चन्द्रगुप्त मौर्य ने केन्द्रीकृत शासन व्यवस्था के द्वारा सम्पूर्ण भारतवर्ष को एक राजनीतिक इकाई के रूप में संगठित किया ।  इस व्यवस्था में सत्ता का केन्द्रीकरण राजा में होते हुए भी वह निरंकुश नहीं होता था ।
(1) केन्द्रीय प्रशासन-
 * राजा को प्रशासन में मदद देने के लिए 18 पदाधिकारियों का एक समूह होता था , जिसे ' तीर्थ ' ( महामात्य)कहा जाता था । सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण तीर्थ थे — मंत्री , पुरोहित , सेनापति एवं युवराज  होते थे। मंत्रियो की नियुक्ति से पहले इनके चरित्र को अच्छी तरह से परख जाता था इस परीक्षण को उपधा परीक्षण कहते थे ।मंत्रियो से नीचे की श्रेणी के अधिकारियों को विभागाध्यक्ष कहते थे।
 ये निम्न प्रकार के थे । (कौटिल्य के अर्थशास्त्र में इनकी संख्या 26 है)
(2)प्रान्तीय प्रशासन-
*मौर्य साम्राज्य पांच प्रान्तों  में विभाजित था ।  
1.उत्तरापथ (तक्षशिला)
2.अवन्तिराष्ट्र (उज्जयिनी)
3.कलिंग (तोसली)
4.दक्षिणापथ(सुवर्णगिरी)
5.मध्य प्रदेश या पूर्वी प्रांत ( पाटलिपुत्र)
*प्रांतों का शासन राजवशीय कुमार अथवा ' आर्यपुत्र ' नामक पदाधिकारियों द्वारा होता था ।
*प्रान्तों को विषयों में बांटा गया था जिसका मुखिया विषयपति होता था
*प्रशासन की सबसे छोटी इकाई ग्राम थी जिसका मुखिया ग्रामीक  कहलाता था।
*प्रशासको में सबसे छोटा गोप था जो दस ग्रामो का शासन देखता था।
(3) नगर प्रशासन-
*मौर्य काल मे नगर प्रशासन हेतु  नागरिक नामक अधिकारी नियुक्त किया जाता था ।
*मेगस्थनीज के अनुसार नगर का प्रशासन 30 सदस्यो का एक मण्डल करता था जो 6 समितियों में विभाजित था ।प्रत्येक समिति में 5 सदस्य होते थे। ये समितियां नगर में चिकित्सा सेवा,जल व्यवस्था, नगर की सड़क निर्माण ,स्वच्छता,जन्म-मरण का लेखा ,उद्योग-धंधे,  व्यापार आदि कार्य करती थी।
(4) सैन्य व्यवस्था-
*मौर्य काल में  सेना हेतु अलग से सैन्य विभाग था जो 6 समितियों में विभाजित था।
*प्रत्येक समिति में 5 सदस्य होते थे।
*सेना के पाँच अंग थे - - पैदल , अश्व , हाथी , रथ और नौ सेना ।
(5) न्याय व्यवस्था
*मौर्य काल में सम्राट न्याय प्रशासन का सर्वोच्च अधिकारी होता था । 
*राजा किसी भी अधिनस्त न्यायालय कर निर्णय को बदल सकता है।
* न्यायालय दो प्रकार के थे — 
( i ) धर्मस्थीय न्यायालय- ये दीवानी न्यायालय थे
( ii ) कटकशोधन न्यायालय -ये फौजदारी न्यायालय थे

अतिमहत्वपूर्ण 👍
1. अर्थशास्त्र में गुप्तचर को गूढ़ पुरुष कहआ गया है
2.एक स्थान पर रहकर कार्य करने वाले गुप्तचर को संस्था कहा जाता था।
3.भ्रमण करने वाले गुप्तचर संचार कहलाते थे।
4.मौर्य काल मे सरकारी भूमि को सीता भूमि कहते थे
5.बिना वर्षा के भी अच्छी खेती होने वाली भूमि को अदेवमातृक  कहा जाता था।
6.खरोष्ठी लिपि दायीं से बायीं और लिखी जाती थी।
7.चंद्रगुप्त को जस्टिन ने सेन्ड्रोकोट्टस नाम दिया था।
8.अशोक का 13 वाँ अभिलेख उसके पश्चाताप तथा कलिंग विजय का उल्लेख करता है।
9.जिस समय चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को 1000 कार्षापण में खरीदा था तब वह राजकिलम नामक खेल ,खेल रहा था।
10. अशोक के समय तीसरी बोद्ध संगीति पाटलिपुत्र में हुई थी।
11. अशोक का राज्यारोहण 273 ईं पू. में हुआ था।जबकि राज्यभिषेक 269 ईं पू. में हुआ था। ये चार वर्ष का अंतर उत्तराधिकार युद्ध मे बीत गया होगा।
12.मौर्यकाल में वेश्याओ को रूपजीवा कहा जाता था।
13. मौर्य काल मे कृषि सम्बन्धित अधिकारी सीताध्यक्ष होता था।

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