सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

पोधो के वानस्पतिक (वैज्ञानिक) नाम

    पोधो के वानस्पतिक (वैज्ञानिक) नाम मक्का  -------जिया मेज ज्वार----------सोरघम वलगयेर मूँगफली------एराकिस हाइपोजिया गन्ना-----------सेकेरम ऑफिसिनेरम पपीता--------कैरिका पपाया टमाटर--------लाइकोपर्सिकम एस्कुलेंटम खजूर --------फोइनिक्स डैकटाइलिफेरा सन्तरा--------सिट्रस साइनेंसिस जौ------------हार्डियम वल्गेयर मटर----------पायसम सेटाइवम सरसो--------ब्रेसिका कम्पेस्ट्रिस धान(चावल)---ओराइजा सैटाइवा बेगन---------सोलेनम मेलोंजीना नारियल-----कोकोज न्यूसिफेरा कपास-------गोसिपियम हरबेसियम सोयाबीन----ग्लाइसिन मैक्स मूँग----------विग्ना रैडिएटा आम--------मेंजिफेरा इंडिका नींबू---------सिट्रस ओरेन्टीफोलियो इमली-------टैमार्रिड्स इंडिका

मानव ह्रदय की संरचना

मोटिवेशनल स्टोरी

      श्री राम जी की सेना जब लंका जाने के लिये सेतु का निर्माण करने में लगी हुई थी। उसी समय एक गिलहरी भी समुद्र के किनारे की रेत को अपने शरीर से चिपकाकर पत्थरो से होती हुई सेतु निर्माण हेतु रेत को शरीर से गिरा कर वापस रेत लेने समुद्र के किनारे आती और शरीर से चिपकाकर वापस सेतु पर जाती और शरीर से रेत हटाकर वापस आती ।ये देख कर काम कर रहे बंदरो ने यह बात श्री राम को बताई ।श्री राम ने गिलहरी को अपने पास बुलाया और पूछा कि तुम ये रेत को श्रीबार बार सेतु पर क्यो डाल रही हो तो गिलहरी ने जवाब दिया में भी सेतु बनाने में आपकी मदद कर रही हु । श्री राम ने कहा कि तुम बहुत छोटी हो और तुमारी इतनी सी रेत से क्या  होगा । तो गिलहरी ने कहा कि में अपनी पूरी क्षमता से ये काम कर रही हु । चाहे  सफलता मिले या न मिले पर में इस धर्मयुद्ध मे आपका पूरी क्षमता से साथ दे रही हु।ताकि मुजे जिंदगी में कभी अफसोस ना हो कि मेने कम मेहनत की ओर असफल हो गए। श्री राम मुस्कराये ओर गिलहरी की पीठ पर प्यार से हाथ फेरा जिससे गिलहरी के ऊपर आजतक दो काली धारिया बनी हुई है।       दोस्तो इस कह...

मानव रोग (Human Diseases)

मानव रोग (Human Diseases) अच्छे स्वास्थ्य में बाधा उत्पन्न होना ही रोग कहलाता है। रोग दो प्रकार के होते है---- (1) जन्मजात रोग - वे रोग जो जन्म के समय से ही शरीर के साथ होते है - ओठ का कटना,पाँव का टेड़ा होना आदि (2) उपार्जित रोग -वे रोग जो जन्म के बाद जीवन मे किसी कारण से उत्पन्न होते है ।  यह भी दो प्रकार के होते है       1. संक्रामक- एक बीमार व्यक्ति से दूसरे स्वस्थ व्यक्ति को संपर्क में आने से फेल जाते है।यह हानिकारक सूक्ष्म जीवों (जीवाणु,वाइरस, प्रोटोजोआ व कवक) के कारण होते है ।इन सूक्ष्म जीवों का संचरण जल ,हवा ,भोजन रोगवाहक कीट(मच्छर,मक्खी,) या शारीरिक सम्पर्क द्वारा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में होता है। जैसे- जुकाम,हैजा,प्लेग,पोलियो एड्स, आदि।      2.असंक्रामक-वे रोग जो बीमार व्यक्ति से स्वस्थ व्यक्ति में नही फैलते है। जैसे-केंसर, मधुमेह, ह्रदय रोग, आदि।

ग्रीन हाउस प्रभाव (Green House Effect)

ग्रीन हाउस प्रभाव (Green House Effect पृथ्वी के वायुमण्डल में बढ़ती हुई हानिकारक गैसें जैसे कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, क्लोरो-फ्लोरो-कार्बन ,मीथेन आदि वायुमण्डल की ऊपरी सतह पर जमकर धरती के तापमान में वृद्धि कर रही है ।इसे ही ग्रीन हाउस प्रभाव कहते है। सूर्य से आने वाली प्रकाश की किरणें जब पृथ्वी की सतह से टकराती है तो ये किरणे अवरक्त किरणों में बदल जाती है ओर पृथ्वी के वायुमण्डल से बाहर चली जाती है परंतु पृथ्वी के वायुमण्डल की ग्रीन हाउस गैसें कुछ अवरक्त किरणों को रोक कर वायुमण्डल को गर्म रखती है।  यदि ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा वायुमण्डल में बढ़ जायेगी तो पृथ्वी का वायुमण्डल ज्यादा गर्म हो जाएगा। जिससे पहाड़ो पर जमी बर्फ पिघलने लग जायेगी जिससे समुद्र का जल स्तर बढ़ जाएगा ।और ऐसे द्वीप तथा शहर जो समुद्र के किनारे है समुद्र में डूब जायेगे जैसे बांग्लादेश, मालद्वीप आदि  बढ़ती जनसंख्या के कारण जीवाश्म ईंधन की खपत बढ़ती जा रही है जिससे वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड तथा अन्य ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा बढ़ रही है जो धरती के तापमान को बढ़ा रही है ...

मेरुरज्जु (Spinal Cord)

मेरुरज्जु (Spinal Cord) मेडुला आब्लोगेटा का पिछला भाग मेरुरज्जु कहलाता है  मेरूरज्जु के चारो और भी मस्तिष्क के समान तीन स्तरों (ड्यूरामेटर, एरेकनायड,और पायमेटर) का आवरण पाया जाता है। मेरुरज्जु बेलनाकार, खोखली होती है। मेरुरज्जु के मध्य मै एक सकरी नाल पायी जाती है जिसे केंद्रीय नाल कहते है इस नाल में द्रव भरा होता है जिसे सेरिब्रोस्पाइनल द्रव कहते है। मेरुरज्जु के अंदर वाला भाग धूसर पदार्थ का तथा बाहरी स्तर को श्वेत पदार्थ का बना होता है। मेरुरज्जु के कार्य-- यह प्रतिवर्ती क्रियाओ का नियंत्रण एवं समन्वय का कार्य करती है। यह मस्तिष्क से आने जाने वाले उद्दीपनों का संवहन करता है।

मस्तिष्क (Brain)

मस्तिष्क (Brain ) मस्तिष्क का चित्र बनाने का सरल तरीके के लिये इस लिंक पर क्लिक करे  https://youtu.be/JhkeBcvK3zY   मानव मस्तिष्क हमारे शरीर का सबसे महत्वपूर्ण भाग है। इसका भार लगभग 1400 ग्राम होता है ।यह बहुत संवेदनशील और कोमल अंग है इसलिये यह अस्थियो के खोल क्रेनियम में बंद रहता है यह क्रेनियम मस्तिष्क को बाहरी चोटो से बचाता है। इसके अलावा भी मस्तिष्क के चारो और आवरण पाये जाते है ।जिन्हें मस्तिष्कावरण या Meninges कहते है। यह तीन झिल्लियों का बना होता है  (1) दृढतानिका (Diameter)  (2) जालतानिका (Arachnoid)  (3)  मृर्दुतानिका (Diameter) मस्तिष्क को तीन भागों में बांटा जाता है।  (1)अग्र मस्तिष्क  (2) मध्य मस्तिष्क  (3) पश्चमस्तिष्क (1) अग्र मस्तिष्क-  *यह मस्तिष्क का सबसे बड़ा भाग 2/3 होता है *इसके तीन भाग होते है प्रमस्तिष्क, थैलेमस,हाइपोथेलेमस *प्रमस्तिष्क  ज्ञान,सोचना-विचारने का कार्य करता है। *थैलेमस  संवेदी  व प्रेरक सूचनाओ का केंद्र है। *हाइपोथेलेमस भूख ,प्यास ,व ताप के नियंत्रण का कार्य कर...

सेरीकल्चर(Sericulture) किसे कहते है ।रेशम कीट का जीवन चक्र समझाइये।

सेरीकल्चर(Sericulture) किसे कहते है ।रेशम कीट का जीवन चक्र समझाइये। Ans-   रेशम कीट को पालकर रेशम प्राप्त करने को सेरीकल्चर कहते है।            रेशम कीट को शहतूत के पौधे  की पत्तियों पर पाला जाता है यह कीट शहतूत की पत्तियां खाता है। रेशम कीट का जीवन चक्र-  मादा रेशम कीट शहतूत की पत्तियों पर बहुत सारे अंडे देती है ।इन अंडो से इल्लियॉ या कैटरपिलर  (लार्वा) निकलते है ।ये लार्वा शहतूत की पत्तियां खाकर बड़े हो जाते है ।इनके पास मकड़ी के समान धागा निकालने वाली ग्रन्थि होती है जिसे रेशम ग्रन्थि कहते है।  ये लार्वा इस ग्रन्थि से पतला धागा निकाल कर अपने चारों ओर लपेट लेता है जिससे लार्वा रेशम के खोल में बंद हो जाता है इसे कोकुन(Cocoon) कहते है।   कोकुन के अंदर का लार्वा प्यूपा कहलाता है ।बाद में कोकुन से वयस्क कीट बन जाता है । ओर पुनः यही जीवन चक्र शुरू हो जाता है।        इससे रेशम प्राप्त करने के लिये कोकुन को गर्म पानी मे डाला जाता है जिससे इसके अंदर का प्यूपा मर जाता है और कोकुन से रेशम का धा...

8 class अर्धवार्षिक पेपर

प्रतिजन और प्रतिरक्षी (Antigen and Antibody)

प्रतिजन और प्रतिरक्षी (Antigen and Antibody)     प्रतिजन (antigen) -प्रतिजन वह बाहरी रोगाणु या पदार्थ होता है जो जीव के शरीर मे प्रवेश होने के बाद शरीर की बी-लसिका कोशिका को प्लाज्मा कोशिका में बदल देता है और ये प्लाज्मा कोशिका प्रतिजन के विरुद्ध प्रतिरक्षी का निर्माण करती है ।    *अतः प्रतिजन वह बाहरी पदार्थ है जिसका आण्विक भार 6000 डाल्टन या उससे ज्यादा होता है ।    *ये प्रतिजन प्रोटीन ,पोलिसेकेराइड,लिपिड ,शर्करा या न्यूक्लिक अम्ल के संघटन से बने हो सकते है।    *प्रतिजन अणु पर वह स्थान जो प्रतिरक्षी से जुड़ता है एंटीजनी निर्धारक या एपिटोप कहलाता है    * प्रतिरक्षी (antibody) - यह वह प्रोटीन होती है जो बी -लसिका कोशिकाओं द्वारा प्रतिजन के कारण बनती है।    *प्रतिरक्षी को इम्युनोग्लोबिन I g  भी कहा जाता है    *प्रतिरक्षी का निर्माण प्लाज्मा कोशिकाओं द्वारा होता है    *प्रतिरक्षी का वह भाग जो प्रतिजन से मिलता है पेरिटोप कहलाता है।    

विधुत जनित्र व विधुत मोटर में क्या अंतर है ?

Q.1=विधुत जनित्र व विधुत मोटर में क्या अंतर है ? Ans.   1.विधुत जनित्र यांत्रिक ऊर्जा को विधुत ऊर्जा में बदलता है जबकि मोटर विधुत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में बदलती है।            2.विधुत जनित्र विधुतचुम्बकीय प्रेरण के सिद्धांत पर कार्य करता है जबकि मोटर चुम्बकीय क्षेत्र में उत्पन्न चालक के बल गति के सिद्धांत पर कार्य करती है           3. जनित्र को दाहिने हाथ के नियम तथा मोटर को बांये हाथ के नियम से समझाया जाता है।           4. जनित्र में वलय  होते है जबकि मोटर में विभक्त वलय होते है।